सऊदी अरब विश्व का कच्चा तेल उत्पादक करने वाला देश है। अभी वर्तमान में न्यूज़ एजेंसी एसपीए जो सऊदी अरब की एक समाचार एजेंसी है उसे पता चलता है कि ऊर्जा मंत्रालय ने एक जानकारी दी है कि जिसमें सऊदी अरब जो तेल को लेकर कटौती कर रहा है, उससे वह बाजार में तेल की स्थिरता के लिए है। आपको बता दें की एक बैरल तेल को बनाने के लिए 30 गैलन गैसोलीन का इस्तेमाल करना पड़ता है। सऊदी अरब ने कहा कि मार्च के आख़िर तक प्रत्येक दिन तेल उत्पादन की क्षमता तकरीबन 90 लाख बैरल तक कर सकता है। तेल उत्पादक देश को ओपेक यानी ऑर्गेनाइजेशन ऑफ द पेट्रोलियम एक्सपोर्ट्स कंट्रीज जिसे निर्यातक देशों का संगठन भी कहा जाता है। ओपेक देश के अंतर्गत तेल उत्पादक देश करीब 40% कच्चा तेल उत्पन्न करते हैं। ओपेक के अंदर करीब 14 देश शामिल है जो इस प्रकार हैं- सऊदी अरब, अल्जीरिया, गाबोन, अंगोंला, कांगो, ईकुएडोर, ईरान, इराक, कुवैत, वेनेज़ूऐला, लीबीया, संयुक्त अरब अमीरात और इक्वटोरियल गुइनए इत्यादि शामिल देश हैं। जिसे सबसे बड़ा कच्चे तेल का भंडार मना जाता हैं। ईरान, इराक, वेनेजुएला सऊदी अरब और कुवैत इस ओपेक के संस्थापक देश हैं। ओपेक ने भी कच्चे तेल की ग गिरती कीमतों के कारण उसे रोकने के लिए तेल उत्पादन में कटौती का निर्णय लिया है। इस निर्णय में रूस देश भी शामिल हो गया है। ओपेक ने एक बड़ा फैसला यह भी लिया है कि तेल आपूर्ति करने वाले देशों में वह ब्राजील को भी शामिल करने जा रहा है। कहा जा रहा है कि जो भी ओपेक प्लस देश है जिनकी पूरी अर्थव्यवस्था तेल की आय पर निर्भर करती है, उन देशों का कहना है कि तेल की कीमतों में बढ़ोतरी होनी चाहिए, परंतु दूसरी तरफ अमेरिका देश तेल की कीमतों पर काबू पाना चाहता है, क्योंकि वह कम बोलने में ही गैस के टैंक को रिजर्व कर लेता है।
कच्चा तेल अतीत में साबित हुआ एक हथियार:-
अरब देश में तेल के भंडार करीब मध्य 19वीं शताब्दी में मिले थे। जिस प्रकार से फिलिस्तीन और इजराइल का युद्ध नया नहीं है उसी प्रकार से अरब का अमेरिका और इजरायल के कच्चे तेल की आपूर्ति के रोक को लेकर एक जंग का छिड़ना नया नहीं है। अरब देश और ईरान सन 1950 से ही पश्चिमी देशों के विरुद्ध तेल को एक हथियार के रूप में अपनाया। उन्होंने फिलिस्तीन में मानव संकट को बढ़ते देखा तो दो बार तेल आपूर्ति को रोक दिया था। दूसरी बार उन्होंने ऐसा किया तो काफी असर हुआ। परंतु इससे पश्चिमी देशों के साथ उन्होंने भी सबक लिया और तेल आपूर्ति को कभी ना रोकने का मन भी बनाया। हमास- इजरायल युद्ध के 10 दिन बाद ही अरब देश ने इसराइल और उसके समर्थन में आई अमेरिका के साथ कई पश्चिमी देशों में तेल आपूर्ति को रोक दिया है और उसके साथ ही ईरान ने तेल की कीमत 70% बढ़ाने का निर्णय भी लिया था। एक देश के अर्थव्यवस्था का तितर -बितर होना उसके तेल आपूर्ति की दशा को भी निर्धारित करता है। इसी प्रकार सन 1973 से 1975 के मध्य अमेरिका की अर्थव्यवस्था 6% घट गई और बेरोजगार की दर 9% बढ़ गई। विशेषज्ञयों के अनुसार अमेरिका में तेल आपूर्ति का मुख्य कारण कहीं ना कहीं इजराइल देश की मदद करना भी हैं।
अरब देश के द्वारा तेल पूर्ति के रोक पर इजरायल- अमेरिका की अर्थव्यवस्था होगी तितर -बितर :-
अमेरिका इस वक्त सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है। क्योंकि सन 2020 में उसने तेल को आयात करने की बजाय निर्यात किया। दूसरे तेल उत्पादक देश से तेल सस्ते दाम पर लेकर उसे अपने तेल भंडार को मजबूत करता रहता है। इसी प्रकार इजरायल की मदद करने में सक्षम है। देखा जाए तो वैश्विक अर्थव्यवस्था तितर -बितर हो गई थी जब कोरोना महामारी और रूस यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ। जिस प्रकार मनुष्य के लिए सांस लेना जरूरी है उसी प्रकार से एक देश के लिए उसके अर्थव्यवस्था उसकी रीढ़ की हड्डी मानी जाती है। ऐसे में फिर जब अरब देश इजरायल-अमेरिका देश को तेल निर्यात नहीं करेगा तो इसे पूरी दुनिया में तहलका मच जाएगा। जिससे अमेरिका में महंगाई बढ़ेगी और फिर वह पूरी दुनिया के अर्थव्यवस्था को तहस-नहस करेगी। ऐसे में ओपेक देशों द्वारा लिए गए निर्णय से फिर अर्थव्यवस्था बिखर जाएगी। अरब देश फिर एक बार पूरी दुनिया में सन 1970 में लिए निर्णय से लोगों को रूबरू कराना चाह रहा है, जिससे तेल की कीमत 4 गुनी बढ़ गई थी।गैस की कमी के साथ-साथ तेल की मात्रा को भी निर्धारित कर दिया गया था और अर्थव्यवस्था की मंदी का भी सामना करना पड़ा था।वैसे भी अमेरिका देश अपने तेल की पूर्ति काज़ाख़्स्तान देश से पूरा करता हैं।और इजराइल अज़रबैजान से अपनी तेल की पूर्ति करता हैं, इसके साथ साथ नाइजेरिया देश भी तेल की पूर्ति करता हैं। ओपेक देशों का इस फैसले से इज़राइल – अमेरिका पर फ़र्क़ पड़े या न पड़े लेकिन जो देश तेल उत्पादक नहीं हैं उसे इसका सामना करना पड़ेगा। सबसे पहले भारत देश प्रभावित होगा। अरब देश के तेल पूर्ति को रोकते हैं ही पेट्रोलियम उत्पाद के मूल्य बढ़ जाएंगे।