महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाए गए कानूनों का उद्देश्य उन्हें सुरक्षा प्रदान करना है। दुर्भाग्यवश, इन कानूनों का दुरुपयोग भी हो रहा है, जिससे कई निर्दोष व्यक्तियों की जिंदगियां प्रभावित हो रही हैं। बेंगलुरु के 34 वर्षीय अतुल सुभाष की कहानी इसका एक दर्दनाक उदाहरण है। अतुल, जो एक निजी कंपनी में वरिष्ठ पद पर कार्यरत थे, अपने घर में मृत पाए गए। प्रारंभिक जांच में यह आत्महत्या का मामला प्रतीत होता है। यह घटना न केवल उनके जीवन का दुखद अंत है, बल्कि यह समाज में मानसिक स्वास्थ्य और घरेलू विवादों की गंभीरता को भी उजागर करती है।
दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा
अतुल की शादी उत्तर प्रदेश की निकिता सिंघानिया से हुई थी। लेकिन कुछ समय बाद उनके रिश्ते में खटास आ गई, और निकिता ने अपने पति और ससुराल वालों पर दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा का केस दर्ज करा दिया। इसके बाद अतुल की जिंदगी कोर्ट और झूठे आरोपों के बीच फंस गई। उन्होंने अपनी मौत से पहले 24 पन्नों का सुसाइड नोट लिखा और अपनी तकलीफ बयान करते हुए डेढ़ घंटे का वीडियो रिकॉर्ड किया। इसमें उन्होंने अपनी पत्नी और उसके परिवार को अपनी मौत का जिम्मेदार ठहराया।
हर महीने दो लाख रुपये गुजारा भत्ता
अतुल ने बताया कि उनकी पत्नी ने तलाक के बदले हर महीने दो लाख रुपये गुजारा भत्ता मांगा। कोर्ट में पेशकार को रिश्वत देने से इनकार करने पर उन्हें 80 हजार रुपये मासिक भत्ता देने का आदेश दिया गया। बार-बार कोर्ट के चक्कर और मानसिक दबाव ने उनकी जिंदगी को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया। 120 से ज्यादा सुनवाई और जौनपुर-बेंगलुरु के लगातार सफर ने उनकी हालत और खराब कर दी।
घर की दीवारों पर लिखा था, “न्याय बाकी”
मरने से पहले अतुल ने अपनी अंतिम इच्छा जाहिर की। उन्होंने कहा कि जब तक उन्हें न्याय न मिले, उनकी अस्थियों को विसर्जित न किया जाए। उनका घर भी इस दर्द को बयान करता था। घर की दीवारों पर लिखा था, “न्याय बाकी है।” उन्होंने अपने दर्द को लोगों तक पहुंचाने के लिए यह संदेश ईमेल और एक एनजीओ के व्हाट्सएप ग्रुप में भी भेजा। पुलिस ने इस मामले को “अप्राकृतिक मृत्यु” के रूप में दर्ज किया और निकिता समेत उनके परिवार के खिलाफ मामला दर्ज किया। जांच जारी है।
अतुल सुभाष की यह कहानी भारतीय न्याय प्रणाली और सामाजिक व्यवस्था पर कई सवाल खड़े करती है। यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति की त्रासदी नहीं है, बल्कि समाज के लिए चेतावनी है। मानसिक दबाव और समाज की असंवेदनशीलता किसी की भी जिंदगी खत्म कर सकती है। ऐसी घटनाओं से बचने के लिए हमें न्याय प्रणाली और समाज दोनों में सुधार की जरूरत है।
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