डॉलर की मजबूती और विदेशी पूंजी के लगातार बाहर जाने के कारण भारतीय मुद्रा रुपये ने शुक्रवार को बड़ी गिरावट दर्ज की। शुरुआती कारोबार में रुपया 46 पैसे टूटकर 85.73 रुपये प्रति डॉलर के सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया। यह रुपये में अब तक की एक दिन की सबसे बड़ी गिरावट है। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह संकेत चिंताजनक है क्योंकि कमजोर रुपया आयात महंगा कर सकता है और महंगाई पर असर डाल सकता है।
डॉलर की मांग में उछाल
विशेषज्ञों का मानना है कि महीने और साल के अंत में आयातकों द्वारा भुगतान दायित्व पूरा करने के लिए डॉलर की मांग में उछाल आया है। इस बढ़ती मांग के कारण डॉलर की कीमत और मजबूत हो गई, जिससे रुपये पर अतिरिक्त दबाव बना। अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड्स में वृद्धि और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं ने भी इस स्थिति को और बिगाड़ दिया। डॉलर इंडेक्स 107.93 के स्तर पर पहुंच गया, जो वैश्विक बाजार में डॉलर की मजबूती को दर्शाता है। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अमेरिकी मुद्रा का प्रभुत्व भी इस स्थिति को प्रभावित कर रहा है।
घरेलू बाजार से मिला सीमित समर्थन
वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में मामूली गिरावट ने रुपये की गिरावट को थोड़ा संतुलित किया। घरेलू शेयर बाजारों से भी कुछ सकारात्मक संकेत मिले, जिससे रुपये की स्थिति थोड़ी बेहतर हुई। शुक्रवार को सेंसेक्स 207.16 अंकों की बढ़त के साथ 78,679.64 पर कारोबार कर रहा था, जबकि निफ्टी 88.50 अंक बढ़कर 23,838.70 पर पहुंच गया। इन बाजार सुधारों ने निवेशकों को कुछ राहत दी, लेकिन रुपये की कमजोरी को पूरी तरह रोकने में असमर्थ रहे। शेयर बाजारों की यह तेजी निवेशकों के विश्वास को बनाए रखने की कोशिश कर रही है।
इतिहास की नजर में रुपये की गिरावट
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपये ने 85.31 पर कमजोर शुरुआत की। इसके बाद यह तेजी से गिरकर 85.35 के अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया। गुरुवार को भी रुपया डॉलर के मुकाबले 12 पैसे गिरकर 85.27 पर बंद हुआ था। पिछले दो कारोबारी सत्रों में रुपये ने 13 पैसे की गिरावट दर्ज की थी। इस महीने के दौरान रुपये में लगातार गिरावट देखी जा रही है, जो भारतीय मुद्रा के लिए एक चिंताजनक संकेत है। बाजार के विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी स्थिति लंबे समय तक बनी रहने से आर्थिक गतिविधियों पर असर पड़ सकता है।
एफआईआई की बिकवाली से बढ़ा दबाव
विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) द्वारा लगातार बिकवाली भी रुपये की कमजोरी का एक प्रमुख कारण है। गुरुवार को एफआईआई ने भारतीय पूंजी बाजार से 2,376.67 करोड़ रुपये के शेयर बेचे। इस भारी बिकवाली से बाजार में नकदी प्रवाह कम हुआ और रुपये पर दबाव बढ़ गया। एफआईआई की लगातार निकासी यह दिखाती है कि विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में अनिश्चितता महसूस कर रहे हैं। इससे न केवल रुपये, बल्कि घरेलू बाजार की स्थिरता पर भी असर पड़ा है।
वैश्विक और घरेलू संकेत
ब्रेंट क्रूड की कीमतें 0.07% बढ़कर 73.31 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गईं, लेकिन यह मामूली वृद्धि रुपये को संभालने में मददगार नहीं रही। वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों में नरमी के बावजूद, भारतीय मुद्रा पर डॉलर की ताकत का प्रभाव भारी पड़ा। इसके साथ ही, अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार और वैश्विक बाजार की अस्थिरता ने रुपये के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं। घरेलू आर्थिक नीतियों और अंतरराष्ट्रीय व्यापार के संतुलन को बनाए रखना इस स्थिति से निपटने के लिए जरूरी है।
Follow Haqiqi News on LinkedIn to be updated with the latest news