भारत में कामकाजी घंटों को लेकर हाल ही में एक नई बहस छिड़ी है। लार्सन एंड टूब्रो (L&T) के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यम ने 90 घंटे काम करने का सुझाव देकर इस चर्चा को और तेज़ कर दिया। उन्होंने सप्ताह में ज्यादा घंटे काम करने और रविवार को भी काम करने का विचार प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि खाली समय में लोग घर पर बैठे कुछ खास नहीं करते। उनका यह बयान कर्मचारियों के निजी जीवन और कामकाजी जीवन के संतुलन पर सवाल खड़ा करता है। यह पहली बार नहीं है जब किसी उद्योगपति ने इस तरह का बयान दिया हो। 2023 में इन्फोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने भी भारतीयों से 70 घंटे काम करने की अपील की थी। उन्होंने इसे भारत के विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए जरूरी बताया था। नारायण मूर्ति का कहना था कि अधिक काम करने से देश की प्रगति में तेजी लाई जा सकती है। हालांकि, उनके इस बयान की भी काफी आलोचना हुई थी।
कानून और जमीनी हकीकत
भारत में कामकाजी घंटों को लेकर कई कानून बनाए गए हैं। न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 के अनुसार, कर्मचारी एक सप्ताह में अधिकतम 40 घंटे काम कर सकते हैं। इसके अलावा, कारखाना अधिनियम, 1948 कहता है कि अगर कोई व्यक्ति सप्ताह में 48 घंटे से ज्यादा या रोजाना 9 घंटे से अधिक काम करता है, तो उसे डबल वेतन मिलना चाहिए। वहीं, नए श्रम संहिता के तहत ओवरटाइम सहित रोजाना 10 घंटे से ज्यादा काम करना गैरकानूनी है। कई बार कंपनियां इन कानूनों का पालन नहीं करतीं। निजी क्षेत्र में कर्मचारी अक्सर 12-14 घंटे तक काम करने को मजबूर होते हैं और इसके बदले ओवरटाइम का भुगतान भी नहीं किया जाता। कई कंपनियां कर्मचारियों को अधिकारी या एग्जीक्यूटिव के रूप में वर्गीकृत कर ओवरटाइम नियमों से बचने की कोशिश करती हैं। इससे कर्मचारियों के स्वास्थ्य और निजी जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
नए श्रम कोड और लंबी घंटों की व्यवहारिकता
भारत सरकार नए श्रम सुधारों की योजना बना रही है। इसके तहत सप्ताह में 5 दिन काम और 2 दिन की अनिवार्य छुट्टी का प्रावधान किया जा सकता है। यह कदम कर्मचारियों को बेहतर कामकाजी और निजी जीवन का संतुलन प्रदान करने की दिशा में एक बड़ा प्रयास होगा। हालांकि, इसे लागू करने में समय लग सकता है और यह देखना होगा कि कंपनियां इन नियमों का पालन करती हैं या नहीं। विशेषज्ञों का मानना है कि सप्ताह में 90 घंटे काम करना व्यावहारिक नहीं है। इससे कर्मचारियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा। लंबे कामकाजी घंटे तनाव, मानसिक थकान और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं। इसके अलावा, कर्मचारियों की उत्पादकता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
लोगों की प्रतिक्रियाएं और समाधान
सुब्रह्मण्यम के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर भी काफी चर्चा हुई। कुछ लोगों ने इसे मजाक के तौर पर लिया, जबकि कई ने इसे अव्यवहारिक और कर्मचारियों के अधिकारों का उल्लंघन बताया। कई लोगों ने यह भी पूछा कि क्या यह नियम उच्च अधिकारियों पर भी लागू होगा। भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ाने के लिए सिर्फ काम के घंटे बढ़ाना समाधान नहीं है। कंपनियों को अपने प्रबंधन और कार्य पद्धति में सुधार लाना होगा। आधुनिक तकनीक और बेहतर प्रबंधन के जरिए कर्मचारियों की उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है। साथ ही, संतुलित कामकाजी जीवन और कर्मचारियों की खुशी पर ध्यान देना जरूरी है, क्योंकि इससे ही उनकी कार्यक्षमता में सुधार होगा।
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