बिहार सरकार ने 2023 में जाति सर्वे का हवाला देते हुए एक आरक्षण में संशोधन करने के लिए आदेश पारित किया। जिसमें एससी एसटी वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण 18 फीसदी से बढ़ा कर 25 फीसदी कर दिया गया। वहीं बिहार सरकार ने पिछड़े वर्ग, एससी और एसटी वर्ग के लिए आरक्षण की सीमा को 50 फ़ीसदी से बढ़ा कर 65 फ़ीसदी करने का प्रावधान किया, लेकिन इसे हाई कोर्ट ने असंवैधानिक कहते हुए रद्द कर दिया। जिस पर बिहार सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई। लेकिन कोई नतीजा न निकला। बिहार सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने हाई कोर्ट के इस फ़ैसले पर स्टे लगाने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के लिए भी सुप्रीम कोर्ट ऐसे ही मामले में अंतिम आदेश जारी कर चुके हैं। सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने अंतिम आदेश देने से इनकार करते हुए इस मामले की सुनवाई को सुचीबद्ध कर कहा कि वह राज्य सरकार की विशेष अनुमति याचिका पर विचार करेगा।
आखिर नीतीश सरकार की क्या हैं मांग
अदालत में बिहार सरकार ने अपनी दलीलें देते हुए कहा कि इस मामले पर तत्काल कोई फैसला लिया जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि सितंबर में बढ़ाए गए आरक्षण के तहत बहुत सी नौकरियां निकली थीं और उनमें इंटरव्यू की प्रक्रिया चल रही है। मेहता ने कहा, ‘इस कानून के आधार पर हजारों अभ्यार्थियों के इंटरव्यू चल रहे हैं।’ इस दौरान सरकार का ही पक्ष रख रहे एक अन्य वकील ने छत्तीसगढ़ का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार ने भी जातिगत आरक्षण की सीमा 50 फीसदी की थी। उस पर राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा रोक लगाई गई , लेकिन फिर सुप्रीम कोर्ट द्वारा उस फैसले पर स्टे लगा दिया गया।
बिहार आरक्षण के मामले पर हाई कोर्ट ने क्यों लगाई रोक
इस पर बिहार हाई कोर्ट का कहना था कि यह नियम संविधान के आर्टिकल 14, 15 और 16 का उल्लंघन करता है। ये आर्टिकल रोजगार के अवसरों में समानता, भेदभाव के खिलाफ बचाव का अधिकार की बात करते हैं। बिहार सरकार के वकील ने कहा कि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को जातीय सर्वे के बाद तोड़ा गया है। इस सर्वे ने बताया है कि राज्य में किन-किन समुदायों में ज्यादा गरीबी है और उन्हें नौकरियों एवं शिक्षा में नीतिगत सहयोग की जरूरत है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर क्या कहा
उनकी इस दलील से बेंच में शामिल जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा सहमत नहीं दिखे। बेंच ने कहा कि हम कोई स्टे नहीं देंगे। उच्च न्यायालय पहले ही कह चुका है कि राज्य की नौकरियों में 68 फीसदी लोगों को आरक्षण मिलता है। बता दें कि नीतीश सरकार ने हाई कोर्ट की ओर से लगी रोक को शीर्ष अदालत में यह कहते हुए चुनौती दी थी कि हमने जो सर्वे कराया था, उसके आधार पर ही आरक्षण बढ़ाया गया है। यह सर्वे बताता है कि कौन सा समाज कितना पिछड़ा है और किसे नीतिगत सहयोग की जरूरत है। गौरतलब है कि 1992 के इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट ने 50 फीसदी जातिगत आरक्षण की लिमिट तय की थी। ऐसे मामले में अकसर उसी की दलील दी जाती है।